किसी भी पुलिस स्टेशन पर दर्ज करा सकेंगे FIR
धारा 173 में जीरो FIR का प्रावधान दिया गया है। जीरो FIR का मतलब है कि घटना किसी भी थाना क्षेत्र की हो, उसकी FIR किसी भी जिले और थाने में कराई जा सकती है। पहले कई बार पुलिस फरियादी को थाना क्षेत्र का हवाला देकर वापस भेज देती थी। इस प्रावधान से फरियादियों को न्याय दिलाने में तेजी आएगी और थानों की मनमानी पर अंकुश लगेगा।
फोन पर मिलेगी केस की जानकारी
धारा 193 के तहत केस में हो रही हर अपडेट 90 दिन के अंदर फरियादी को बतानी होगी। केस दर्ज कराने वाले व्यक्ति को केस, उसकी प्रोग्रेस और अपडेट की हर जानकारी मोबाइल नंबर पर SMS के जरिए दी जाएगी। इससे पीड़ित को अपने केस की स्थिति की जानकारी आसानी से मिल सकेगी और न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
पहली बार क्रिमिनल कानूनों में आतंकवाद शामिल
BNS की धारा 113 में आतंकवाद और आतंकी गतिविधियों को परिभाषित किया गया है। दोषी पाए जाने पर आरोपी को फांसी और उम्रकैद की सजा हो सकती है। पहले IPC में आतंकवाद शामिल नहीं था। ऐसे मामलों को अनलॉफुल एट्रोसिटीज प्रिवेंशन एक्ट यानी UAPA के तहत पेश किया जाता था। UAPA के नियम ज्यादा सख्त होते हैं और मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि BNS और UAPA दोनों एक साथ काम कैसे करेंगे।
मॉब लिंचिंग पर अलग से कानून, फांसी की सजा
BNS की धारा 103(2) के मुताबिक अगर 5 या उससे ज्यादा लोगों का ग्रुप जाति, धर्म, भाषा, लिंग, नस्ल, आस्था जैसी वजहों के आधार पर किसी व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर देता है, तो ग्रुप के हर व्यक्ति को फांसी की सजा हो सकती है। मॉब लिंचिंग में उम्रकैद और जुर्माना भी हो सकता है। पहले IPC में इसके लिए अलग से कोई कानून नहीं था। मॉब लिंचिंग के दोषियों पर IPC की धारा 302 के तहत हत्या का केस ही दर्ज किया जाता था। मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ने के बाद देश में लंबे समय से अलग कानून की मांग उठ रही थी।
अरेस्ट होने पर जानकारी देने का प्रावधान
सेक्शन 36 के मुताबिक व्यक्ति को अरेस्ट होने के बाद अपनी इच्छा के किसी भी एक व्यक्ति को अरेस्ट की जानकारी देने का अधिकार दिया गया है। इससे अरेस्ट हुए व्यक्ति की मदद हो सकेगी, साथ ही कानूनी प्रक्रिया में तेजी आएगी। इससे व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होगी और पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार होगा।
बेल और हिरासत के प्रावधानों में बदलाव
नए कानून के तहत बेल और हिरासत के प्रावधानों में भी बदलाव किए गए हैं। अब आरोपी को बेल मिलने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि केवल गंभीर और संगीन अपराधों में ही आरोपी को हिरासत में रखा जाए और मामूली अपराधों में उसे जल्द से जल्द बेल मिल सके। इससे जेलों में भीड़भाड़ कम होगी और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार होगा।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान
महिलाओं की सुरक्षा के लिए नए कानून में विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसमें महिलाओं के खिलाफ अपराधों की तेजी से जांच और सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट का गठन, महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाने और उन्हें विशेष प्रशिक्षण देने जैसे उपाय शामिल हैं। इसके अलावा, महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है।
बाल अपराधियों के लिए सुधारात्मक प्रावधान
नए कानून में बाल अपराधियों के लिए सुधारात्मक प्रावधान किए गए हैं। इसमें बाल अपराधियों के पुनर्वास और शिक्षा के उपाय शामिल हैं। बाल अपराधियों को सुधार गृहों में भेजने की प्रक्रिया को भी पारदर्शी और न्यायसंगत बनाया गया है। इससे बाल अपराधियों के भविष्य को सुधारने में मदद मिलेगी और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सकेगा।
डिजिटल साक्ष्य का उपयोग
नए कानून में डिजिटल साक्ष्य को मान्यता दी गई है। इसमें डिजिटल डाटा, ईमेल, सीसीटीवी फुटेज, और अन्य डिजिटल माध्यमों से प्राप्त साक्ष्यों को अदालत में पेश करने और उन्हें कानूनी मान्यता देने का प्रावधान शामिल है। इससे जांच प्रक्रिया में आधुनिकता और पारदर्शिता आएगी, साथ ही डिजिटल अपराधों से निपटने में भी मदद मिलेगी।
ये सभी प्रावधान नए कानून 2023 के तहत लागू किए गए हैं, जो न्याय प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, त्वरित और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
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