शून्य विवाह की अवधारणा- Null & Void Marriages
विवाह एक ऐसी प्रथा है जो लगभग पूरी दुनिया में पाई जाती है। इसमें दो बालिग व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने का निर्णय लेते हैं। पहले विवाह केवल पुरुष और महिला के बीच ही मान्य था, लेकिन वर्तमान में कई देशों में समान लिंग के व्यक्तियों के विवाह को भी कानूनी मान्यता प्राप्त हो रही है। हालांकि, भारत में इस प्रकार के विवाह अभी तक मान्य नहीं हैं। भविष्य में इस स्थिति में बदलाव हो सकता है, लेकिन वर्तमान कानूनों के तहत ऐसे विवाह "Null and Void" माने जाते हैं।
विवाह की कानूनी मान्यता का महत्व
विवाह को कानूनी मान्यता क्यों दी जाती है, यह समझना आवश्यक है। कानूनी मान्यता के बिना विवाह से जुड़े अधिकारों और कर्तव्यों का निर्धारण करना कठिन हो सकता है। भारत में विवाह से संबंधित प्रमुख कानून निम्नलिखित हैं:
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हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 – हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के विवाह, तलाक और संतान की वैधता को नियंत्रित करता है।
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इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 – ईसाई धर्म के अनुयायियों के विवाह को विनियमित करता है।
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मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 – मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के विवाह, तलाक और उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
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पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 – पारसी धर्म के लोगों के विवाह और तलाक से संबंधित है।
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विशेष विवाह अधिनियम, 1954 – यह कानून धर्म और जाति से परे अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाहों को कानूनी मान्यता देता है।
शून्य (Null) विवाह क्या होता है?
कुछ विवाह ऐसे होते हैं, जो कानून की दृष्टि से प्रारंभ से ही अमान्य होते हैं, अर्थात् उनकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती। इसे "Null and Void Marriage" कहा जाता है। ऐसे विवाहों को अदालत से रद्द कराने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे पहले से ही अमान्य माने जाते हैं।
कौन-से विवाह ‘शून्य’ माने जाते हैं?
1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत शून्य विवाह:
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यदि किसी व्यक्ति का पहले से कोई वैध विवाह अस्तित्व में हो (द्विविवाह - Bigamy)।
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यदि पति-पत्नी का संबंध ‘Sapinda’ या निषिद्ध संबंध (Prohibited Degree of Relationship) में आता हो।
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यदि विवाह आवश्यक रस्मों के बिना संपन्न हुआ हो।
2. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 24 के तहत शून्य विवाह:
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यदि विवाह के समय लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम या लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम हो।
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यदि कोई पक्ष मानसिक रूप से अस्वस्थ हो और विवाह की सहमति देने योग्य न हो।
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यदि विवाह निषिद्ध संबंध (Prohibited Relationship) में आता हो।
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यदि पति या पत्नी में से कोई नपुंसक (Impotent) हो।
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यदि कोई पुरुष या महिला पहले से विवाह में हो और दूसरी शादी कर ले।
3. मुस्लिम कानून के तहत ‘बातिल निकाह’ (Void Marriage) की शर्तें:
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विवाह मुस्लिम कानून की शर्तों के अनुसार न किया गया हो।
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विवाह निषिद्ध संबंध में हुआ हो।
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विवाह ‘इद्दत’ अवधि के दौरान संपन्न हुआ हो।
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यदि मुस्लिम महिला पहले से विवाहित हो।
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यदि विवाह धोखाधड़ी या जबरदस्ती से हुआ हो।
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यदि विवाह पूर्ण रूप से सम्पन्न (Consume) न किया गया हो।
शून्य विवाह (Void Marriage) के कानूनी प्रभाव
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कानूनी मान्यता नहीं: ऐसे विवाह को कानून द्वारा मान्यता नहीं दी जाती।
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वैवाहिक अधिकार नहीं: पति-पत्नी के रूप में कोई अधिकार नहीं बनते।
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उत्तराधिकार अधिकार: यदि पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है, तो दूसरा उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकता।
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संतान की वैधता: ऐसे विवाह से उत्पन्न संतानें वैध मानी जाती हैं, लेकिन उन्हें केवल पिता की अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property) में अधिकार मिलता है।
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भरण-पोषण अधिकार नहीं: शून्य विवाह में पत्नी भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती।
मुस्लिम कानून में शून्य विवाह के प्रभाव:
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ऐसे विवाह से उत्पन्न संतानें अवैध (Illegitimate) मानी जाती हैं।
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पत्नी को ‘मेहर’ (Dower) या भरण-पोषण (Maintenance) का अधिकार नहीं होता।
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पति-पत्नी के बीच कोई उत्तराधिकार (Inheritance) का अधिकार नहीं होता।
शून्य विवाह और तलाक में अंतर
बिंदु | शून्य विवाह (Void Marriage) | तलाक (Divorce) |
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परिभाषा | विवाह जो कानूनन मान्य नहीं है। | कानूनी रूप से वैध विवाह को समाप्त करने की प्रक्रिया। |
कानूनी स्थिति | विवाह कभी हुआ ही नहीं माना जाता। | पहले विवाह मान्य था, लेकिन अब समाप्त हो रहा है। |
प्रभाव | कोई वैवाहिक अधिकार नहीं बनते। | विवाह से जुड़े अधिकार और कर्तव्य बने रहते हैं। |
उत्तराधिकार अधिकार | पति-पत्नी को कोई अधिकार नहीं होता। | तलाक से पहले उत्तराधिकार का अधिकार रहता है। |
संतान की स्थिति | बच्चे वैध होते हैं लेकिन पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं होता। | तलाकशुदा दंपति के बच्चों को पूर्ण उत्तराधिकार मिलता है। |
भरण-पोषण (Maintenance) | पत्नी को कोई हक नहीं होता। | तलाक के बाद पत्नी भरण-पोषण की मांग कर सकती है। |
कोर्ट में क्या किया जा सकता है?
यदि कोई व्यक्ति शून्य विवाह में फंस गया है, तो उसे विवाह को चुनौती देने के लिए अदालत का सहारा लेना चाहिए। ✔ अदालत विवाह को ‘Null and Void’ घोषित कर सकती है। पीड़ित पक्ष को राहत के लिए अन्य कानूनी उपाय भी उपलब्ध होते हैं।
इस प्रकार, शून्य विवाह और तलाक दो अलग-अलग कानूनी अवधारणाएँ हैं। शून्य विवाह में विवाह को शुरुआत से ही अमान्य माना जाता है, जबकि तलाक में पहले से मान्य विवाह को समाप्त किया जाता है।