जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की सुप्रीम कोर्ट पीठ ने फैसला सुनाया कि “जमानत देते समय कठिन, अनुचित या अत्यधिक शर्तें नहीं लगाई जानी चाहिए। इसके अलावा, जमानत देने के लिए पैसे देने की शर्त शामिल करने से यह धारणा बनती है कि पैसे जमा करके जमानत हासिल की जा सकती है। जमानत देने के प्रावधानों का उद्देश्य और मंशा यह नहीं है।”
गुजरात की एक सिटी अदालत द्वारा जमानत हासिल करने के लिए पैसे जमा करने की शर्त को हटाते हुए, पीठ ने रमेश कुमार बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य मामले में पारित फैसले का अवलोकन किया और संदर्भ लिया।
अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ऋषि माटोलिया की दलील पर ध्यान देते हुए, अदालत ने कहा कि “अपीलकर्ता - अरुण भानुभाई वघासिया ने जमानत पर बने रहने की शर्त के रूप में 50,00,000/- रुपये (केवल पचास लाख रुपये) जमा करने के निर्देश को चुनौती दी है। उन्हें अपनी रिहाई की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर यह राशि जमा करनी थी।
पीठ ने यह भी कहा कि जब कथित लेनदेन हुआ तब अपीलकर्ता कंपनी का निदेशक नहीं था और उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है। शिकायतकर्ता ने कंपनी के पूर्व निदेशकों के साथ मामले में समझौता कर लिया है।
अधिवक्ता ऋषि माटोलिया, निखिल कुमार सिंह, महेन्द्र सिंह ईन्दा, रजनीश शर्मा, रघुवीर पुजारी, सुमति शर्मा, याचिकाकर्ता के लिए उपस्थित हुए । जबकि अधिवक्ता दीपान्विता प्रियंका, स्वाति घिल्डियाल और देवयानी भट्ट गुजरात सरकार के लिए उपस्थित हुए और अधिवक्ता भद्रीश एस राजू,, तत्सत ए भट्ट,अजय पांडव, अन्नम वेंकटेश, राहुल मिश्रा, धूलि शिव शंकर शिकायतकर्ता के लिए उपस्थित हुए।
Case Details:-
CRIMINAL APPEAL NO. 3777 OF 2023
(arising out of SLP (Crl.) 3249 of 2023)
ARUN BHANUBHAI VAGHASIYA
VERSUS
STATE OF GUJARAT
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